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हृदय रोग के कारण एवं बचाव


लेखक


डॉ. अजयदीप भटनागर


एम.डी., डी.एम. (कार्डियोलॉजी) एम्स दिल्ली वर्तमान में आप एमवाय हॉस्पिटल एवं एम. जी. एम. मेडिकल कॉलेज इंदौर के मेडिसिन विभाग में सह प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।


 



पिछले दो दशकों में हृदय रोग से पीड़ित मरीजों की संख्या में काफी इजाफा हआ है। विश्व में इन मरीजों की संख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि दक्षिण पूर्व एशिया और विशेषकर भारत में हई है। हृदय रोग का काफी बड़ी संख्या में केरोनरी ArtervDisease यानि कि हृदय की माँसपेशियों की रक्त प्रवाह की धमनियों का सकरा हो जाना है। इसके अलावा जन्मजात हृदय रोग, हृदय की मांसपेशियों के रोग, हृदय के वाल्व संबंधित रोग भी हमारे देश में ज्यादा है। हृदय की धमनियों से संबंधित रोग न केवल संख्या में ज्यादा है, परंतु हमारे देश में दूसरे देशों के अपेक्षाकृत कम आयु में हो जाता है एवं कम आयु में ही गंभीर स्थिति में होता है। इसका मुख्य कारण बदलती जीवन शैली, मधुमेह रोग, धूम्रपान एवं उक्त रक्त चाप यानि हाई ब्लड प्रेशर है। देखा गया है कि पुरुषों में ये रोग महिलाओं को अपेक्षा ज्यादा होता है। हालांकि रजोवत्ति उपरांत महिलाओं में रोग ज्यादा होने लगता है। युवाओं में जब उनके काम करने की क्षमता सर्वाधिक होती है तब ये रोग न केवल उनके शरीर पर वरन उनके रोजगार, परिवार की आय एवं बच्चों के विकास पर भी पतिकल पभाव डालती है। एक विवाहित कमाऊ पुरुष की मृत्यु या बीमारी परे परिवार का जीवन झंझोड़डालती है। बदलती


बदलती जीवन शैली


भारत एक कषक प्रधान देश है, जहां मख्य रूप से शारीरिक श्रम द्वारा खेती आय एवं Econony का मुख्य साधन रहा है। v का मख्य साधन रहा है। वर्तमान युग में Electronics एवं Technology के के Revolution के उपरांत प्रत्येक काम मशीन द्वारा किए जाते हैं। इस कारण शारीरिक श्रम का रोजमर्रा के जीवन में अभाव हो गया है। ये ही नहीं Transport के सुगम साधन होने से आम व्यक्ति ज्यादातर वाहनों पर निर्भर हो गया है। थोड़ी सी दूरी भी तय करने के लिए वह गाडी का सहारा लेता है। यही हालत मल्टी स्टोरी की है, जहां एक या दो मंजिल जाने के लिए भी लिफ्ट का सहारा लिया जाता है। खान-पान में हमने वहीं पुरानी शैली अपनाई हुईहै। यानि शारीरिक श्रम और सुख साधन में जहां हमने पाश्चात्य देशों को अपनाया है, पर खानपान के मामले में हम काफी वसायुक्त पदार्थ का सेवन करते हैं। ये बदलती जीवन शैली का मुख्य कारण है जिसके कारण भारतियों में हृदय धमनी संबंधित रोग जैसे कि हार्ट अटैक या एन्जाईना बढ़ रही है। रेशे का अभाव, हरी, पीली सब्जी एवं ताजे फलों की कमी भी आहार में देखी जा सकती है।


मधुमेह रोग


मधुमेह के रोगियों की संख्या में पिछले दशक में काफी इजाफा हुआ है, ये माना जा रहा है कि 2025 में विश्व में सर्वाधिक मधुमेह के रोगी भारत में होंगे। जितने ज्यादा मधुमेह के रोगी होंगे उतने ही हृदय रोगी की संख्या में बढ़ावा होगा। मधुमेह के मरीज की मृत्यु अधिक अंततः हृदय रोग से ही होती है। ये ही नहीं मधुमेह के रोगी को किडनी, मस्तिष्क एवं नेत्र संबंधित रोग भी रहते हैं। उच्च रक्त चापका संबंध हृदय धमनी के रोगों से है, उच्च रक्त चाप यदि लंबे समय तक रहे तो शनै-शनै धमनी सख्त व संकरी हो जाती है एवं रक्त पवाद की कमी के कागा पीने में टर्ट एवं अटैक की बीमारी होती है। लगभग 20-25 प्रतिशत लोगों एवं अटैक की बीमारी होती है। लाभग 20 को 50 साल के उपरांत उच्च रक्त चाप रहता है। काफी लोग अपना ब्लड प्रेशर नपवाते ही नहीं हैं। ये ही नहीं, कई बार मरीज को ब्लड प्रेशर की बीमारी है ये तब पता चलता है जब हृदयाघात या लकवा हो जाता है। हृदयरोग के लक्षणों से बचना है तो आवश्यक है कि हम अपना रक्त चाप या ब्लड प्रेशर नियंत्रण में रखें।


धम्रपान 


वर्तमान में धूम्रपान का चलन भी बढ़ गया है। युवा ही नहीं स्कूल के बच्चे भी इस से ग्रसित है। संवैधानिक चेतावनी, बढ़ती कीमतें और अन्य Regulations व करारोपण होने के बावजूद धूम्रपान की लत दिन प्रतिदिन बढ़ रही है, बड़े शहरों में महिलाएं भी इसका शिकार हो रही हैं। धूम्रपान में Nicotine एवं अन्य हानिकारक पदार्थ हृदय की धमनी को सख्त करते हैं एवं वहां पर खून का धक्का जमाने में सहायक रहते हैं। इसके फलस्वरूप धमनी में रक्त प्रवाह का अवरोध एवं दिल का दौरा या मृत्यु होने के भय बढ़ जाता है।



वंशानुगत


कई बार उपरोक्त दर्शाए गए कारणों के अभाव में ही हृदय रोग धमनी के रोग हो सकते हैं। यदि माता-पिता को हार्टअटैक की बीमारी है विशेषकर पिता को 45 साल और माता को 55 साल के पहले ही ये रोग है तो संतान में हृदयाघात की संभावना अपेक्षाकृत ज्यादा हो जाती है।


बचाव के उपाय 


1.शारीरिक श्रम करें, वजन नियंत्रित करें, हरी सब्जी, पीले फल, ताजे रसयक्त फलों का सेवन करें वसायक्त पदार्थों से परहेज करें। 2. धूम्रपान न करें। 3. मधुमेह को नियंत्रण में रखें। 4. उच्च रक्तचापकी नियमित जांच करावें। 5. 35 साल के बाद अपने चिकित्सक को दिखाकर Screening कराए कि आपको इस जान लेवा रोग का कहीं खतरा तो नहीं है। 6. उपरोक्त रिस्क फैक्टर के लिए बताए गए उपायों का नियमित रूप से पालन करें।


 


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