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दिल धक-धक करन लगा

                      


जी हाँ, दिल और धड़कन का अटूट रिश्ता जिन्दगी की शुरुआत से ही है। धड़कन न केवल हृदय की, अपितु जीवन की भी पहचान है। शरीर की अन्य क्रियाएँ जैसे कि श्वसन, पाचन आदि जन्म लेने के बाद शुरू होती हैं, परंतु दिल का धड़कना जन्म के भी पूर्व गर्भधारण के मात्र 5वें सप्ताह से ही शुरू हो जाता है एवं तब से यह मृत्युपर्यंत लगातार धड़कता रहता है। हमारे सोते-जागते, हँसते-खेलते या फिर आराम करते हर वक्त धड़कन निर्बाध नियम से चलती रहती है।


डॉ. अजयदीप भटनागर  इंदौर



जाने-माने हृदयरोग विशेषज्ञ हैं। आपने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली से हृदयरोग में डीएम की उपाधि प्राप्त की है। आप वर्तमान में एमवायएच, इंदौर में सह प्राध्यापक मेडिसिन के रूप में कार्यरत है। 


             इस वृदह शरीर का मात्र 500 ग्राम वजनी हृदय निष्काम कर्मयोगी की तरह बिना रुके, बिना शिकायत किए, बिना अपना मेहनताना लिए आजीवन कार्य ८ करता रहता है। चाहे कितने भी अजीज रिश्ते साथ छोड़ जाएँ, पर दिल की संगिनी धडकन भी बगैर रुके जीवन संगीत की ताल पर थिरकती, नाचती, गाती उम्रभर दिल का साथ निभाती है। वैसे तो मस्तिष्क को शरीर का नियंत्रणकर्ता कहा जाता है, परंतु इस मास्टरमाइंड को ठीक से चलाने के लिए भी दिल की धड़कन के द्वारा ही रक्त प्रवाहित होकर मस्तिष्क को समुचित कार्य करने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन एवं अन्य पोषक तत्व पहुँचाए जाते हैं। इस प्रकार अपरोक्ष रूप से हृदय मस्तिष्क के द्वारा पूरे शरीर की जटिल गतिविधियों का संचालन करता है।


                       धड़कन- हृदय का स्पंदन' सामान्य तौर पर जीवन का प्रथम एवं अंतिम चिह्न होता है। गर्भावस्था में भी कोई जटिलता आने पर सोनोग्राफी द्वारा हृदय की धड़कन देखकर ही 'ऑल इज वेल' का आश्वासन दिया जाता है। कई बार गर्भस्थ शिशु के दिल की धड़कन बिगड़ने मात्र से उसके प्रसव करवाने के समय और तरीके के बारे में निर्णय लिया जाता है। हृदय रक्त को पंप करने वाली मशीन की तरह कार्य करता है। हृदय की संरचना में 2 आलिंद व 2 निलय एवं इनके बीच कछ वॉल्व होते हैं, जो कि एक यूनिट की तरह कार्य करते है। एव इनके क्रमिक संकुचन एवं शिथिलन द्वारा हृदय में धड़कन पैदा होती है।



                       धड़कन का नियमन हृदय में ही स्थित कुछ विशेष प्रकार की कोशिकाओं और उनके तुआ के जाल द्वारा होता है एवं इनकी कार्यप्रणाली बिगड़ने पर धड़कन में भी विभिन्न सहत अक्टूबर 2018 प्रकार की अनियमितताएं आ जाती है एवं धड़कन असामान्य होकर बीमारी का रूप ले लेती है।


                      सामान्यतः हृदय प्रति मिनट 70 से 75 बार धड़कता है एवं हर बार 70 मिलीलीटर रक्त प्रवाहित करता है। इस प्रकार हृदय द्वारा प्रति मिनट लगभग 5 लीटर रक्त का पंपिंग होता है। सामान्यत: दिल के धड़कने का हमें आभास नहीं होता है यहाँ तक कि व्यायाम के दौरान, खेलते समय या फिर कहीं भावभीने क्षणों में कब हमारी धड़कन तेज हो गई या निद्रा में डरावने सपने देखते समय कब धड़कन बढ़ गई, हमें पता ही नहीं चलता है। बुखार की अवस्था या थॉयराइड ग्रंथि की कुछेक बीमारियों की वजह से भी दिल की धड़कन तेज हो सकती है। परंतु कभी जब हृदय की धड़कन महसूस होने लगती है तो यह एक समस्या के रूप में सामने आती है और मरीज सिर्फ यही शिकायत लेकर आता है कि 'दिल धक-धक' करने लगा है। हर पल गपचप काम करने वाले हृदय की धडकन का आभास होना मरीज के लिए बेहद डरा देने वाला होता है। कई बार यह समस्या क्षणिक होती है तो कई बार विभिन्न अंतरालों से होती रहती है। कभी कसरत करने या सीढ़ियाँ चढ़ने-उतरने जैसी छोटी-मोटी गतिविधियों के दौरान या इन कामों के बाद में भी 'धक-धक हो सकती है।



                      धडकन का आभास होने का कारण या तो हृदय का बेतहाशा तेज गति से धड़कना होता है या फिर उसके धड़कने का आवेग बहुत ज्यादा होता है और इस वजह से धड़कन अनियमित भी हो सकती है। कभी-कभी धड़कन चलना या धक-धक का आभास परीक्षा के डर से. अकेले सनसान घर में, रात के घप अँधेरे के डर से या फिर किसी विषम परिस्थिति का सामना होने पर हो सकता है। इन हालातों में कई बार धक-धक का कारण कोई बीमारी न होकर मनोवैज्ञानिक भी हो सकता है।


                       धक-धक की बीमारी का एक और कारण होता है, जब धड़कन का संचालन करने वाले विशेष तंतु एवं कोशिकाओं में कोई जन्मजात खराबी हो तब बचपन से लगाकर जीवनकाल में कभी भी यह समस्या बीमारी बन आ खड़ी होती है। धक-धक के फलस्वरूप हृदय की पंपिंग प्रभावित होती है और धड़कने के बावजूद हृदय अपने अंदर भरे हुए रक्त को धमनियों में भेज नहीं पाता है। इस वजह से हृदय में भरे हुए रक्त में छोटे-बड़े थक्के जमने लगते हैं, जो कि कभी भी शरीर की किसी रक्त वाहिनी में जाकर वहाँ के रक्त प्रवाह में रुकावट पैदा कर सकते हैं जिसके फलस्वरूप मस्तिष्क, गुर्दे, नेत्र, हाथ-पैर एवं हृदय भी प्रभावित हो सकते हैं और मरीज पक्षाघात, हृदयाघात, अंधत्व एवं हाथ-पैर के गैंगरिन जैसी घातक बीमारियों के शिकार भी हो सकते हैं।



                     अधिकतर इस बीमारी के लक्षण दवाइयों से ठीक हो जाते हैं, परंतु कुछ जटिल केसेस में रेडियो फ्रिक्वेंसी एबलेशन जैसे इलाज की आवश्यकता पड़ सकती है, जो कि उच्च स्तरीय चिकित्सा केंद्रों पर उपलब्ध होती है। परतु इस धक-धक का मुख्य इलाज मरीज को सांत्वना प्रदान करना है साथ ही बीमारी का प्रकार भी तय करना है। कि धक-धक का कारण सामान्य शारीरिक स्थिति है या अंदरुनी छिपी हुई गंभीर बीमारी के प्राथमिक लक्षण हैं।


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