देवरिया : जिला कृषि रक्षा अधिकारी रतन शंकर ओझा ने बताया है कि चूहे न सिर्फ हमारे घरों में रखे सामान, अनाज, फसलें इत्यादि कुतर कर नष्ट करतें है वरन् ये तमाम रोगों जैसे प्लेग, मस्तिक ज्वर(जे.ई.) इत्यादि के वाहक का कार्य करते है। स्तनपाइयों में रोडेन्ट आर्डर सर्वाधिक विविधता का है, जिसमें 2200 से अधिक प्रजातियां है। ये सामाजिक जीव है, जिनकी सन्तानोत्पति की अत्यधिक क्षमता होती है। एक जोडी चूहे से वर्ष भर में 1000 से अधिक संख्या उत्पन्न होती है। चूहे का नियंत्रण सामूहिक रुप से 30-40 व्यक्तियों/कृषक समूहों द्वारा साप्ताहिक रुप से कार्यक्रम चलाकर ही संभव है। उन्होने बताया है कि सबसे पहले खेतो का निरीक्षण कर जिंदा बिलो की पहचान आवश्यक है, जिन्हे चिन्हित कर एवं बन्द करतें हुए झण्डे लगा दें। दूसरे दिन निरीक्षण में जो बिल बन्द हो वहां से झण्डे हटा दें तथा जहां बिल खुला पाये, वहां झण्डे लगा रहने दे। खुले बिल में बिना जहर का चारा (एक भाग सरसों का तेल व 48 भाग चना/बेसन) रखें। अगले दिन पुनः बिलो का निरीक्षण कर बिना जहर का चारा रखें। अगले दिन जिंक फास्फाईड 80 प्रतिशत की एक ग्राम मात्रा, एक ग्राम सरसों का तेल व 48 ग्राम भुना चना आदि से बने चारे को बिल में रखें अगले दिन बिलो का निरीक्षण करें तथा मरे चूहों को एकत्र कर जमीन में गाड दे। अगले दिन बिलो को बन्द कर दें उसके अगले दिन यदि बिल खुले पाये गये तो कार्यक्रम पुनः प्रारम्भ कर दें। घरों में चूहा नियंत्रण हेतु जिंक फास्फाइड के अलावा ब्रोमोडाईलोन 0.005 प्रतिशत की टिकिया का प्रयोग किया जा सकता है, जिसे चूहा 3-4 बार खाने के बाद मरता है। चूहे की संख्या नियंत्रित करने के लिये अन्न भण्डारण धातु से बनी बखारियों, पक्के/कंक्रीट पात्रों में करें, जिससे उनको भोज्य पदार्थ सुगमता से उपलब्ध न हो। चूहे की बिलें, झाडियों, मेडो, कूडो आदि में स्थायी रुप से होती है, जिनकी साफ सफाई से ये नियंत्रित हो सकते है।
चूहों के प्राकृतिक शत्रुओं बिल्ली, उल्लू, बाज, चमगादड आदि का संरक्षण करें। खेतों में बर्ड पंच लगाए, जिस पर पक्षी बैठकर चूहों का शिकार कर सकें। चूहों के मलमूत्र, बाल, लार आदी में रोगों के कीटाणु होते हैं, जिनसे प्लेग, लेपिडोस्पाईरोसिस आदि बीमारियां फैलाती है। स्क्रब टाइफस पैरासाइट्स जे.ई. के प्रसार में सहायक होते हैं, जो चूहों के शरीर में पाए जाते हैं। इस प्रकार चूहा नियंत्रण जन-स्वास्थ फसल सुरक्षा आदि में अत्यावश्यक है। उन्होने बताया है कि जे.ई. रोग के अन्य संक्रामक रोगो के विषाणु के वाहक मच्छरों को कुछ विशेष पौधों को लगाकर नियंत्रण किया जा सकता है, जैसे गेंदा, गुलदाउदी, सिट्रोनेला, रोज मैरी, तुलसी, लेवेन्डर, जिरैनियम, मिन्ट/पिपरमिन्ट। ये पौधे तीव्र गन्ध वाले एसेन्शियल आयल अवमुक्त करतें है, जिनसे मच्छर दूर भाग जाते है। इस प्रकार इन फूल पौधो को घरों के आस-पास लगाने से वातावरण तो सुगन्धित होता ही है, साथ ही खतरनाक मच्छरों से भी बचाव होता है। इनमे से कुछ पौधों की प्रजातियों द्वारा तो ऐसे रासायनिक तत्व मुक्त किये जाते है, जो मच्छरों की प्रजनन क्षमता कम कर देते है। इस प्रकार इन पौधो के रोंपड़ द्वारा भी मच्छरों को दूर कर जे.ई./ए.ई.एस. रोग से बचाव किया जा सकता है।
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